नववर्ष को मनाएं
नववर्ष को मनाएं
विधा - आनंदकंद / दिग्पाल / मृदुगति छंद (मात्रिक)
लगावली - गागालगा लगागा, गागालगा लगागा
मापनी - २ २ १ २ १ २ २, २ २ १ २ १ २ २
नववर्ष को मनाए, सत्कार गीत गाए।
संस्कार को चलाकर, घर में गुढ़ी लगाए।।धृ।।
श्री ब्रह्मदेव ने ही, था सृष्टि को बनाया।
भर प्राण जीव मे ही, संसार को चलाया।
वह रोज आज ही था, आवो खुशी मनाए।
संस्कार को चलाकर, घर में गुढ़ी लगाए।।१।।
श्रीराम राज्यरोहण, था रोज आज का ही।
विश्वास राम पर है, सारे समाज का ही।।
आवो सभी मनीषी, मिलकर दिपक जलाए।
संस्कार को चलाकर, घर में गुढ़ी लगाए।।२।।
विक्रम सभी शकों को, इस भूमि से भगाया।
राज्याभिषेक से ही, संवत शुरू कराया।।
आवो समाज के जन, पोवार दिन मनाए।
संस्कार को चलाकर, घर में गुढ़ी लगाए।।३।।
त्योहार देवि माँ का, प्रारंभ आज से ही।
गढ़ कालिका सजाते, श्रृंगार साज से ही।।
उपवास साधना कर, माँ शक्ति को जगाए।
संस्कार को चलाकर, घर में गुढ़ी लगाए।।४।।