आशा के दीप
आशा के दीप
कभी मासूमों के होंठों पे मुस्कान ला कर तो देखो
उनके घरों में उजाला बढ़ा के तो देखो, एक दीप उनके घर जला कर तो देखो।
रह रहे हैं कुछ मासूम चेहरे
जिंदगी की अंधेरी बस्तियों में
एक आशा का दीप उनकी बस्ती में जला कर तो देखो।
यही मकसद है इनसानियत का सुदर्शन,
हर मासूम के चेहरे पे रौनक ला कर तो देखो।
अपनी ऊंची इमारतों को कभी
फांद कर तो देखो,
बुझते चिरागों की रोशनी झांक कर तो देखो,
सो जाते हैं बिन खाये पीये जो उन मासूमों को झांक कर तो देखो।
ठिठुरता है जिनका बदन सर्द रातों में जलता है जिनका बदन झुलसती हुई धूप में
उनको कभी वस्त्र पहना के तो देखो, रखते हैं आशा वो
रोशनी की हर किसी से एक
आशा का दीपक उनके जला के तो देखो।
माना है की कुछ इंसान फरिश्ते बने फिरते हैं, इनसानियत की कीमत कभी
चुका कर तो देखो, एक आशा का दीपक जला कर तो देखो।
देखा है जानवरों को गले लगाते सुदर्शन,
कभी मासूमों को भी गले
लगा कर तो देखो, खिल
जाएगा उनका चेहरे भी
सुमन की तरह, कभी उनके
बगीचे में फूल लगा कर तो
देखो।
