पतझड़
पतझड़
पीत पत्र की हुई विदाई,
नवपल्लव की अगुवाई से।
पेड़ कहीं ठूंठ ना हो जाए,
किसलय की रुसवाई से।।
पेड़ लगाएं प्रकृति बचाएं ,
सोचें हम यह गहराई से।
कैसी हालत हो जाती है,
हरितिमा की तन्हाई से।।
हरियाली बिन प्रकृति सूनी,
घर सूनी बेटी की विदाई से।
धरा में भी तो होती हैं दरारें,
होती हैं जैसे पांव बिवाई से।।
पतझड़ भी सिखला जाती,
जीवन की सीख कड़ाई से।
कोपलों का स्वागत ना भूलें,
अपने हृदय की गहराई से।
