था विश्वास मुझे
था विश्वास मुझे
था विश्वास मुझे अपने पंखों पर
उनकी ताकत पर , मज़बूती पर
था उड़ान का जुनून सदा सर पर
उड़ान की आस शामो सहर
कैसे अनदेखा कर देती मेरी नज़र
उस विश्वास की दुनिया कितने प्यार से सजाई
मगर किसने देखा ,किसने समझी पीर पराई
किसने नापी किसी के दिल की गहराई
टूट गया विश्वास ,किस्मत ने कहानी दोहराई
हैं जल्लाद कदम कदम पर ,राम दुहाई
हर कोशिश की ,खड़ी रहूं मैदाने जंग में
पर कटे जब पंख,रूह कांप गई ,देह संग में
चाहने से क्या होता है, किस्मत हो संग में
तभी बने बात , तभी उड़ान की जंग में
कमी न हो ज़रा भी मन की उमंग में
टिकी हूं मैदाने जंग में आज भी- कुतरे पंख सही
पंख बिना भी मैं उड़ने को तैयार- रोकेगा कौन
पंख नहीं मगर वजूद मेरा है बरकरार- इच्छाशक्ति वही
ज़िंदगी खोलती है राहें कई और- रोक सके है कौन
राहें सभी बंद नहीं है दृढ़ विश्वास आज भी ।
