जिंदगी
जिंदगी
रूठा हुआ दिल मेरा रहा मुझसे,
करता रहा हर बार कुछ शिकायतें,
ये ज़िन्दगी यूँ ही बीत रही थी "मीन",
रिश्ते बनाने, समझने और निभाने में।
राब्ता खुद से ही ना किया था कभी,
आती थी हर दफा इक नन्ही इल्तिज़ा,
कुछ मासूम ख़्वाहिशें लिए दिल में,
जो बेकल थी इक बार मुस्कुराने को।
कुछ शौक फिर ज़िंदा किये उस पल,
वो बेकार बेवजह की बातें भूल जाने को,
फिर कलम से कर ली थीं मैंने दोस्ती,
दिल-ए-जज़्बात शब्दों में सजाने को।