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Meena Singh "Meen"

Inspirational

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Meena Singh "Meen"

Inspirational

सुनो मैं दौड़ में नहीं रहती

सुनो मैं दौड़ में नहीं रहती

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सुनो मैं दौड़ में नहीं रहती,

जो सब कहते हैं, वही...

हां वही बात मैं नहीं कहती,

अक्सर दुनिया समझ लेती है,

अभिमानी है, ये तो घमंडी है,


उफ्फ, तौबा, कितनी ज़िद्दी है,

सुनकर ये तमाम जुमले बारहा,

मैं बेपरवाह नदी सी अपनी ही,

राह, फिर भी सदा ही बहती।


सुनो मैं दौड़ में नहीं रहती,

जो सब कहते हैं, वही...

हां वही बात मैं नहीं कहती।


मैं....और अभिमानी हां....

क्या सच में ऐसा कुछ है ?

सोचा कई बार मैंने रुककर,

खुद को समझकर समझा,

वजूद को परख कर परखा,

जवाब बस यही इक आया,

बेफिक्र हो दिल मुस्कुराया

मैं मुझ जैसी हूं स्वतंत्र पक्षी,

मेरी रूह पिंजरों में नहीं रहती।


सुनो मैं दौड़ में नहीं रहती,

जो सब कहते हैं, वही...

हां वही बात मैं नहीं कहती,


अरे....मैं तो बागी हूं सदा से,

स्व-परिवार, सभ्य समाज और

इस गिरगिट सम दुनिया से,

कई कुरीतियों, प्रथाओं, जाति,

धर्म, कानून और अन्याय से,


स्त्री समाज की बेतुकी बंदिशों से,

आज़ाद, उन्मुक्त, स्वच्छंद, बेबाक,

मैं पवन सी चंचल शीतल बयार हूं,

सीमाओं के दायरों में नहीं रहती।


सुनो मैं दौड़ में नहीं रहती,

जो सब कहते हैं, वही...

हां वही बात मैं नहीं कहती।


सुनो मैं नारी हूं और मुझे स्वयं पर,

मात्र इसी एक बात का अभिमान है,

जननी हूं मैं, यही मेरा आख्यान है,

मर्यादित हूं, संस्कारों से सुसज्जित भी,

तुम्हारी दौड़ में शामिल होना मेरी तौहीन है,


मेरा दिल हर बार ही बागी है विचारों से,

समझ सको तो समझ लो ऐ समाज!

मैं आज़ाद हूं तुम्हारे बनाए व्यवहारों से,

मुझे बस इल्म है इतना कि मोहब्बत,

कभी भी शर्तों, बंदिशों में नहीं रहती।


सुनो मैं दौड़ में नहीं रहती,

जो सब कहते हैं, वही...

हां वही बात मैं नहीं कहती।


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