मां
मां
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नारी तुम जल सी कोमल
वज्र की सी कठोर भी हो
सौंदर्य की मूर्त हो तुम ,
सशक्त हो हर रूप में पूर्ण हो तुम
मां का कोमल हृदय रख
संतान पर वात्सल्य लुटाती
संतान की परवरिश की खातिर
स्वयं की पहचान भी मिटाती
बिना कुछ कहे ही बच्चों के
मन की बात समझ जाती
जब कभी वो निराश हो
प्रेरणा से उनको राह दिखाती
कभी गुरू बन कभी सखा बन
जीवन का पाठ पढ़ाती
मां के ऋण हैं बहुत हम पर
चुका सकते नहीं हम जीवन भर।