हौंसले की प्रतिमूर्ति
हौंसले की प्रतिमूर्ति
स्त्री तेरे रूप अनेक,
स्त्री हौंसले की प्रतिमूर्ति हैं।
आ जाए कोई मुश्किल तो,
लड़ती बन दुर्गा चंडी हैं।
ना हो कोई आवलंबन तो,
ढाल बनी खड़ी दिखती हैं।
अपनी छोटी छोटी बचत से,
संभालती गृहस्थी के बजट को।
परिवार की धुरी होकर सबका रखती ध्यान,
मजाल जो कुछ गड़बड़ हो जाए।
कुछ गलत होने से पहले ही,
सही करना भी सीखा हैं।
अपनी परवाह कहां वो खुद करती हैं।
सबके चेहरे की मुस्कान से ही तो उसे,
अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती हैं।
हां सच ही तो हैं,
स्त्री हौंसले की प्रतिमूर्ति हैं।।