कहानीकार
कहानीकार
हाँ, मै लिखती हूँ कहानियाँ औरतो की
मेरे और तुम्हारी तरह
या फिर वह बूढ़ी अम्मा
पैसठ साल की
सिर पर लकड़ियों और ज़िम्मेदारियों
का बोझ ढोते हुए।
हाँ, मै लिखती हूँ
कहानियाँ इन सबकी।
बहुत कुछ कहना है इनको, सुनोगे?
इनके कई किस्से और कहानियाँ
जीवन के बोझ तले
यूँ ही दब जाते है।
कहना इनको बहुत कुछ है
पर फिर भी, कह कुछ नही पाते।
हाँ, मैं लिखती हूँ कहानियाँ इनकी
इनके उपलब्धियों की
इनके छोटी-छोटी खुशियों की
दुखो, आंसुओ और हताशाओ की
समाज से मिले तिरस्कार की
परिवार से मिले दुत्कार की।
हाँ, मैं लिखती हूँ कहानियाँ औरतो की
उनके आत्म विश्वास की,
उनके स्वाभिमान की,
मान मर्यादा बोध की,
सफलता के आंसुओ की,
प्रेम के उफान की,
उनके रूप के, रंग की,
चेहरे पर दाग धब्बो की,
संकोचो की,
चाहतो से लिप्त इच्छाओ की,
हाँ, मैं लिखती हूँ कहानियाँ औरतो की।