मैं क्या करूं
मैं क्या करूं
काले बादल घिर कर आये
जाने क्या संदेश लाये
अब की भी क्या प्रिय न आये
दिल में उठती हूक हाय ।
क्या करूँ मैं क्या करूँ
अब विरह की अग्नि में मुझसे जला जाता नहीं ।
पूरा सावन पूरी मैं मुझसे रहा जाता नहीं ।
कामना लहराती आई भावना बलखाती आई
देखकर मैं रह न पाई क्या करूँ ? मैं क्या करूँ ?
जिनके प्रिय संग में रहे उनको कोई भी गम नहीं ।
उनकी खुशियां छीन लेने आता कोई यम नहीं ।
पा के पिय का संग गोरी लगता मानो भंग पीली ।
झूले में सावन के झूली क्या करूं मैं क्या करूं
मैं नहीं थी जानती तुम इस तरह तरसाओगे ।
आज बन जायेगा कल परसो भी तुम न आओगे ।
ढोंगियों सा ढंग तेरा अजनबी सा रंग तेरा मन फिर भी चाहे संग तेरा ।
क्या करूं मैं क्या करूं