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Archana kochar Sugandha

Tragedy

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Archana kochar Sugandha

Tragedy

वसुधैव कुटुंबकम

वसुधैव कुटुंबकम

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वसुधैव कुटुंबकम


बहुत उठा ली, नारी सशक्तिकरण पर आवाज 

छोटे तंग कपड़ों पर, खूब उठे सवाल ।


फैशन की मार झेल गई, सनातनी परंपराएं 

पाश्चात्य सभ्यता के, किसने खोले हैं कपाल।


देहाती, अनपढ़ लगने लगी, साड़ी सूट-सलवार

धोती-लूंगी ने, जींस कोट-पेंट से मिलाए सुरताल।


गुलामी के नशे में, झूमे गॉर्जियस, मॉड लुकिंग हैंडसम हंक 

अपनी सभ्यता-संस्कृति के दमन पर, किसको रहा मलाल। 


पूजा अर्चना के स्वस्ति में, सिर पल्लू पर खड़े किए सवाल 

हमसे सभ्य वहीं रहे, जिनको बुर्का, हिजाब में नहीं रहा मलाल।


नमाज के नमाजी, हर हाल पहुंचे मजार 

हम ऋषि-मुनियों के पावन, सनातन का भी कहां रख पाए ख्याल।


विदेशी चुरा ले गए, हमारी वेशभूषा के पारंपरिक परिधान

साड़ी-धोती में जपने लगे, हरे रामा-हरे कृष्णा, सुनो दीनदयाल।


हम उत्कर्ष पर, वसुधैव कुटुंबकम के मंजुल-मनीषी

दीप्त नहीं रख पाए मंत्र साधना में, यज्ञ-यज्ञोपवीत की मशाल।


अर्चना कोचर



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