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Archana kochar Sugandha

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Archana kochar Sugandha

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मस्त पवन का झोंका

मस्त पवन का झोंका

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काश! मैं मस्त पवन का झोंका होती ।

मधुर संगीत की झंकार पर 

होले-होले, शाय-शाय 

अपने भीतर देती दस्तक।

बाहर बहा देती प्रलय मचाते

भीतर के आंधी-तूफानों को।


धूल भरी पछुआ के 

गर्म लू के थपेड़ों से 

निजात पाकर

गर्मी का विनाश करती 

सावन के आगाज में 

चलती मैं पवन पुरवाई 

गीत मल्हार गाती।


पतझड़ को गले लगाती 

बसंत की मीठी-मधुर बहारों में 

मैं केवल राग बसंत गुनगुनाती।


काश! मैं मस्त पवन का झोंका होती ।

अर्चना कोचर


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