यह नंदिनी कब सजे
यह नंदिनी कब सजे


नन्ही नंदिनी मचल उठती थी
बिंदी, लिपस्टिक और काजल को ।
लपेटकर मां की ओढ़नी
लहराकर चलती थी
साड़ी के आंचल को।
नंदिनी रानी
तुम हो गई हो सयानी
अभी उम्र नहीं है तुम्हारी
सजने-संवरने की ।
लाद दिया बस्ते का बोझ
पकड़कर कॉपी-पेंसिल, किताब
तुम पढ़ा करा रोज ।
पढ़ लिखकर जब तुम
अफसर बन जाओगी
तब सज-संवरकर, दफ्तर जाना ।
नंदिनी सज संवरकर जब दफ्तर जाने लगी थी
मां-बाबा की नजरें बल खाने लगी थी।
जमाने की नजरों में
कुछ मिलावट नजर आती है
बिटिया इतना सज संवरकर
क्यों दफ्तर जाती है ?
नंदिनी! हम पर आंच आती है
जब दुनिया तुम्हारे पर उंगली उठाती है ।
शादी के बाद तुम सज-संवर लेना
सारे अधूरे अरमान, पूरे कर लेना।
दुल्हन बन नंदिनी इतरायी
बिंदी, चूड़ा, मांग-टीका
उम्र अब सजने-संवरने की है आई ।
अब हार-श्रृंगार में सजी-धजी नंदिनी
हरोज घंटों आईना निहारती थी
सजना की बाहों में
अपने रूप-सौंदर्य पर इतराती थी।
शादी की खुमारी सिर चढ़कर बोलती थी
नंदिनी छम-छम पायल छनकाती
यहां-वहां डोलती थी ।
हाथों की मेहंदी अभी कहां छूटी थी
सजने-संवरने
की उम्र फिर से रूठी थी।
ससुराल में बेटी नहीं
बहू की सरपरस्ती थी।
घर-दफ्तर,पति-बच्चों की साज-संभाल
में सामंजस्य बैठाते-बैठाते
अलमारी में सजे
कपड़े-गहने और सौंदर्य प्रसाधन
कब फैशन और तारीख से बाहर हो गए
पता ही नहीं चला ।
जब जिंदगी की आपा-धापी से
मिली थोड़ी सी फुर्सत थी
चेहरे पर झुर्रियां और बालों में चांदी,
उतर आई थी।
रंगने लगी थी नंदिनी
बालों को खिजाब से
और सौंदर्य प्रसाधनों से
चेहरे की झुर्रियों को छुपाने लगी थी।
चांदी से चमकते दो-चार बाल
खिजाब के आगे सिर उठा लेते थे
सौंदर्य प्रसाधन झुर्रियों के आगे
बेबस हुए थे ।
पति, बच्चे और लोग
अक्सर उम्र बोध करवा देते थे ।
यह कोई उम्र है सजने-संवरने की
इस उम्र में तुम सिंपल-सोबर ही
अच्छी लगती हो ।
उम्र की अवस्थाएं गुजर चुकी थी
नंदिनी के सजने-संवरने के अरमान
अलमारियों की तहों में पड़े-पड़े
अधूरे ही रह गए थे।
आत्म-परमात्म मिलन में
उम्र, हालात और वक्त से बेखबर
रोते-बिलखते परिजन
सधवा के श्रृंगार में सजाकर
गुणगान गा रहे थे।
यह सजी-धजी नंदिनी
कितनी खूबसूरत लग रही है ।