थका हारा दफ़्तर से आए, आते ही वो गेंद उठाए। थका हारा दफ़्तर से आए, आते ही वो गेंद उठाए।
इस दौड़ की मंज़िल से बेख़बर बस दौड़ते जाते हैं और एक दिन ज़िन्दगी की शाम ढल जाती है इस दौड़ की मंज़िल से बेख़बर बस दौड़ते जाते हैं और एक दिन ज़िन्दगी की शाम ढल जाती ह...
अब तुम्हारी ही टेरिटोरी में मैं तुम्हें मात देती हूँ। अब तुम्हारी ही टेरिटोरी में मैं तुम्हें मात देती हूँ।
मज़बूत बनाती है मुझे हर पल इस संकीर्ण मानसिकता वाले समाज से लड़ने के लिए। मज़बूत बनाती है मुझे हर पल इस संकीर्ण मानसिकता वाले समाज से लड़ने के लिए।
टूटे हुए हृदय को धीर नहीं देता है दफ्तर । टूटे हुए हृदय को धीर नहीं देता है दफ्तर ।
भारतीय इंसान ताकि फिर से मिले हिंदी भाषा को अपनी पहचान। भारतीय इंसान ताकि फिर से मिले हिंदी भाषा को अपनी पहचान।