मुझे ठहरना है
मुझे ठहरना है
ये ज़िन्दगी भी बड़ी अस्त व्यस्त सी लगती है
वक़्त हीं कहाँ है पल भर ठहरने को भी
सुबह के अलार्म से जो रफ़्तार शुरू होती है
वो शाम की हड़बड़ी पर आकर रुकती है
या यूँ कह लीजिये कि,
मियां की मस्ज़िद वाली दौड़ जैसी हो गई है
हमारी घर से दफ़्तर और दफ़्तर से घर वाली दौड़
और इस बीच ना कुछ दिखाई देता है ना सुनाई देता है
इस दौड़ की मंज़िल से बेख़बर बस दौड़ते जाते हैं
और एक दिन ज़िन्दगी की शाम ढल जाती है
और वक़्त पीछे मुड़ने की भी इजाज़त नहीं देता।
नहीं!! डर लगता है ऐसी कल्पना मात्र से
चन्द पलों के लिए हीं सही..
मुझे ठहरना है, मुझे आत्म निरीक्षण करना है
मुझे ठहर कर, बिना मंज़िल की दौड़ में
दौड़ती दुनिया को देखना है
मुझे ठहरना है।