ये ज़िन्दगी
ये ज़िन्दगी
ये ज़िन्दगी बड़ी अस्त व्यस्त सी लगती है
वक़्त हीं कहाँ है पल भर ठहरने को
सुबह के अलार्म से जो रफ़्तार शुरू होती है
वो शाम की हड़बड़ी पर आकर रुकती है
ये ज़िन्दगी बड़ी अस्त व्यस्त सी लगती है
वो जो मियां की मस्ज़िद वाली दौड़ होती है ना
ठीक वैसी ही है ये दौड़
जो हमारे घर से दफ़्तर और दफ़्तर से घर आकर रुकती है
ये ज़िन्दगी बड़ी अस्त व्यस्त सी लगती है
इस बीच अक़्सर बहुत कुछ कहती है ये ज़िन्दगी
चुपके से आकर कानों में
कि अब लौट भी जा ऐ पँछी, सुकून नहीं है
दौलत के उन कैदखानों में
पर हड़बड़ी कुछ इस क़दर है दौड़ की
जिसमे ना कुछ दिखाई देता है ना सुनाई देता है
बेख़बर है इस दौड़ की मंज़िल से सब
पर हर कोई इसमें दौड़ता दिखाई देता है
और एक दिन..
एक दिन जीवन की शाम ढलने लगती है
ज़िन्दगी की बातें यूँ अचानक सुनाई पड़ने लगती है
जी में आता है कि क्यूँ ना एक बार मुड़कर देखा जाये
जिन बातों को नज़रअंदाज़ करते थे कभी,
क्यूँ ना उनसे जुड़कर देखा जाये
पर अब ये खेल इतना आसान नहीं है ज़नाब
यहाँ सब कुछ आपके बस में नही होता..
वक़्त ने भी अब ली है करवट कुछ ऐसी
कि अब वो पीछे मुड़ने की इजाज़त नहीं देता।
नहीं!! डर जाती हूँ ऐसी कल्पना मात्र से
डर जाती हूँ बिना मंज़िल वाली दौड़ से
डर जाती हूँ ज़िन्दगी की इस होड़ से
चन्द घण्टों के लिए ही सही
चन्द मिनटों के लिए ही सही
या फ़िर चंद पलों के लिए ही सही
मुझे ठहरना है, मुझे ठहर कर आत्म निरीक्षण करना है
रोज़ की भागदौड़ से कुछ वक़्त चुरा कर
उसे खुद पर लुटाना है
ख्वाबों के तिनकों को जोड़-जोड़ कर
मुझे एक आशियाना बनाना है
मुझे ठहरना है, मुझे ठहर कर उस ओर जाना है
जो राह मुझे ज़िन्दगी दिखाती है
मुझे ठहर कर वो गीत गाना है
जो ज़िन्दगी अक़्सर मेरे कानों में गुनगुनाती है
उसके गीतों में खुशबुएँ है फूलों की.. झरने है, तालाब है,
और नदियों का बहता पानी है
इससे पहले कि वक़्त आ जाये उसे अलविदा कहने का
मुझे जी भर कर उससे यारी निभानी है।