इज़हार-ए-इश्क़
इज़हार-ए-इश्क़
गम नहीं अब तेरी जुदाई का हमें
पर तेरा साथ जो होता ये दिल आबाद हो जाता
लेकिन फिर से मत आना क़समें वफ़ा के खाने
इज़हार-ए-इश्क़ अब हमें रास नहींं आता
वो मन्नतों वाला धागा भी तोड़ दिया है हमनें
पर जेहन से तेरा ख़्याल नहींं जाता
मोहब्बत आज भी उतनी ही है तुमसे
लेकिन इज़हार-ए-इश्क़ अब हमें रास नहींं आता
तेरी यादों की जंजीरों में क़ैद कर लिया है ख़ुद को
कहीं और अब हमको सुकून नहींं आता
शायर बनकर लिखेंगे नगमे तुम्हारी चाहत के
क्योंकि इज़हार-ए-इश्क़ अब हमें रास नहींं आता
इज़हार-ए-इश्क़ अब हमें रास नहींं आता।

