तुम्हारी तस्वीरें
तुम्हारी तस्वीरें
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तुम ज़रूर सोचते होंगे कि
क्यूँ मैं तुमसे अक़्सर तस्वीरें माँगा करती हूँ..
ऐसा सोचना बनता भी है,
जब देखो मांगती रहती हूँ तस्वीरें, पर क्या करूँ..
ख़्वाहिश तुम्हारी बाजुओं में
क़ैद होकर ढेरों बे सिर पैर की बातें करने की है
ख्वाहिश तुम्हारे कंधों पर सिर रखकर
घंटों बस यूँ हीं बैठे रहने की है
ख्वाहिश ये भी है तुम सामने बैठे रहो
और मैं बिना पलक झपकाए बस तुम्हें देखती रहूँ
पर समझती हूँ, मैं समझती हूँ तुम्हारे हालात को,
मैं समझती हूँ तुम्हारे जज़्बात को, मैं समझती हूँ
इसलिए ख्वाहिशों को ख्वाहिशें हीं रहने देती हूँ
और अक़्सर तुम्हारी तस्वीरों से बातें कर लिया करती हूँ
और तुम्हें पता है, तुम्हारी तस्वीरें बड़े ग़ौर से सुनती हैं मुझे
मैं बोलती जाती हूँ वो सुनती जाती हैं
उसे किसी बात की जल्दबाजी नहीं होती
मेरी वो हर बात जिसे मैं तुमसे नहीं कह पाती
अक़्सर तुम्हारी तस्वीरों से कह देती हूँ
तुम्हारी तस्वीरें बहुत ख़ास है मेरे लिए
क्योंकि तुम्हारी तस्वीरें कभी भी
तुमसे दूरियों का अहसास नहीं होने देतीं
फिर भला क्यूँ ना प्यार करूँ तुम्हारी तस्वीरों से।