उसे उड़ने दो
उसे उड़ने दो
माना, कि नादान है वो परिन्दा...
माना, कि उसके पर बहुत ही नाज़ुक हैं अभी..
समझ नहीं है उसे आसमान के ऊँचाइयों की...
समझ नहीं है उसे दुनियादारी की...
और उसे ये भी समझ नहीं है,
कि वो कैसे सामना करेगा
उन खतरों के मंडराते बादल का..
जो हर पल उसका रास्ता रोकेंगी
आसमान की ऊँचाइयों में..
पर फ़िर भी, आज़ाद कर दो उसे..
वो सीख लेगा नाज़ुक परों से
उस ऊँचे आसमान में सफ़र करना...
माना, वो बहुत सी चोटें खायेगा..
पर सीख लेगा उन चोटों से ख़ुद का बचाव..
वो सीख लेगा दुश्मनों को मुहतोड़ सबक सिखाने का हुनर...
चिलचिलाती गर्मी में जब उसे प्यास लगेगी.
वो तलाश लेगा कोई नदी, तालाब या झरना..
और बुझा लेगा अपनी प्यास..
वो सीख लेगा लहलहाती फ़सल से
दाने चुराकर भूख मिटाने का हुनर...
और एक दिन वो सीख जायेगा,
आसमान की ऊँचाइयों पर राज करने का हुनर..
बस उसे आज़ाद कर दो... उसे उड़ने दो।