प्रदूषण की रफ़्तार
प्रदूषण की रफ़्तार
देखते तो हर दिन हैं प्रदूषण की रफ़्तार यहाँ,
हर ओर है धुआँ धुआँ पर हम समझने को तैयार कहाँ?
दौड़ती गाड़ियों की रौनक है पर सड़कें बेजान सी लगती हैं,
पेड़-पौधों का नाम नहीं पर कूड़ा-कचरा और
गंदगी दिल्ली की पहचान सी लगती है।
देखा है हर एक जुबाँ पर शिकायतों की भरमार यहाँ,
बचा सके जो पर्यावरण को.. है भला वो प्यार कहाँ?
ज़िन्दगी को नज़रअंदाज़ कर.. शानो शौक़त में डूबे रहते हैं,
पेड़ भला अब कौन लगाये.. पर माँग ठंडी छाया की करते हैं।
सच हीं है कि.. मानव विनाश का कर्ता भी है मानव यहाँ,
वक़्त मिला तो संभला नहीं.. अब भला वो वक़्त कहाँ?
बुरा भला सब परे छोड़कर करता अपने मन की है,
ग़लत नहीं ये बात कि मनुष्य स्वभाव से हीं मतलबी है।