मैं खुश था
मैं खुश था
उस शाम
तुमसे अचानक हुई मुलाकात से
मैं खुश था.
हाँ,
कुछ बोल न पाया था,
और न तुम्हारा
हाल पूछ पाया था.
पर हमारी नज़रों के टकराने से
मैं खुश था.
तुम आज भी वैसी ही
सुन्दर लग रही थी,
खूबसूरती को तो तुम्हारी
कभी नज़र भी ना लगी थी,
उस प्यारी सूरत को
एक बार फिर पास से देखकर
मैं खुश था.
नज़रों के मिलते ही
उन्हें फेरना पड़ा था,
दिल में उमड़ती इच्छा को
न चाहते हुए भी
दबाना पड़ा था,
अल्फ़ाज़ों को हलक के अंदर
भेजना पड़ा था,
पर ये सोचकर की शायद
आज भी तुम मेरी मज़बूरी समझ सकती हो
मैं खुश था.
वैसे कुछ बदल भी गया था
अल्हड़पन को ममता की गर्व ने
ढक लिया था,
तुम्हारी ही जैसी दिखने वाली
उस नन्ही जान को
सीने से लगाने का दिल किया था
और न लगा पाने का फिर
दर्द भी हुआ था.
पर तुम्हारी गोद में
तुम्हारा नन्हा रूप देखकर
मैं खुश था.
अब हमारी ज़िन्दगी की गाड़ी
अलग पटरियों पर दौड़ रही है,
न जाने फिर कब
एक दूसरे के सामने से गुज़रेगी,
पर उस एक पल में
बीते कई सालों को फिर से जीकर
मैं खुश था...!
