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मेरा रूठना

मेरा रूठना

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हमेशा अच्छा लगा

तुम्हारे साथ वक्त बिताना

मेरा रूठना

और तुम्हारा मुझे मनाना

मेरा हर बात में बोलना

और तुम्हारा, मुझे सुनना

मेरा छोटी-छोटी बात पे मचलना

और तुम्हारा मुझे संभालना…

फिर कुछ बदल-सा गया

अब तुम बोलते थे,

मैं चुप रहती थी

तुम देखते थे,

मैं आँखें चुराती थी

जब तुम नहीं आते,

मैं मर ही जाती थी

तुम्हे इतना चाहा,

कि और कुछ चाहने को,

बचा ही नहीं

आज सोचती हूँ

क्या इस चाहत की चाहत ही गलत थी?

हाँ

शायद

क्योकि 

और भी बहुत कुछ चाहिये

जीने के लिये,

चाहत के सिवा


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