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Anita Agarwal

Abstract

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Anita Agarwal

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एहसास

एहसास

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छत पर घूमते हुए हम परेशां ही रह गए हैं अब 

कहते हैं पास ही कहीं आबादी थी, मकां ही रह गए हैं अब... 

इंतज़ार रहता है हर पल कि कोई आवाज़ दे 

क़दमों की आहट सुनने के अरमां ही रह गए हैं अब...

मेरे पास के घर में कुछ लोग रहा करते थे कभी 

कोई आवाज़ नहीं कि वो घर वीरां रह गए हैं अब... 

शब भर सोचते रहे तुम्हारी बातें किस कदर 

कि यादों के सिलसिले तन्हा ही रह गए हैं अब...

इस अकेलेपन का एहसास कितना अजीब-सा है 

क्या कहें कि क्या थे और क्या रह गए हैं अब...

..


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