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Kavita Parmar prajapati

Drama

5.0  

Kavita Parmar prajapati

Drama

बेटी

बेटी

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आँगन की रंगोली बनकर

कितने रंग बिखेरती है बेटी

फूलो की खुशबु बनकर

सरे घर में फैल जाती है बेटी।


रोशनी बनकर सरे घर को

जगमगाती है बेटी

कभी पत्नी बनकर साथ देती है !

कभी माँ बनकर दुःख हर लेती है !


फिर भी उसके दुःख तो

देखे ही नहीं किसी ने

उसका साथ तो

दिया ही नहीं किसी ने।


जो जुडी है साँसों से

उसे ही दूर करते हो अपने हाथों से

कहते हैं ! लोग बेटिया पराया धन है !

इसलिए बेटियों का रोया मन है !


बेटियाँ तो अनमोल रत्न धन है !

फिर क्यूँ कहते उसे पराया धन है ?


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