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मुस्कुराना

मुस्कुराना

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मुस्कुराना अब एक ज़रुरत है।

इससे ज़िंदगी खूबसूरत है।


बुरा नहीं लगता आइना देख के ?

बिना मुस्कराहट के कितनी मायूस ये सूरत है !


भूल क्यों नहीं जाते अपने सारे दुःख दर्दो को,

क्या इसके लिए भी कोई मुहूर्त है ?


ढूंढ़ने से मिल जाते हैं भगवान हर जगह,

न मिले तो तेरे घर में भी तो भगवान की एक मूरत है !


मांँग ले उन्हीं से जो माँगना है,

इधर अहंकार की क्या ज़रुरत है !


तू तेरे विश्वास पर मुस्करा कर खड़ा रह,

ख़ुदबख़ुद भाग जाएगी तकलीफें, उनकी क्या इतनी जुर्रत है ! !


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