STORYMIRROR

Habib Manzer

Drama

3  

Habib Manzer

Drama

निकाला दिलसे चाहत भी ज़ेहन से

निकाला दिलसे चाहत भी ज़ेहन से

1 min
14.7K


सड़न की बू किसी के जिस्म से

उलझना दिल का किसके रूह से


वो गंदुम सा बदन सूरत या सीरत

निकाला दिल से चाहत भी ज़ेहन से


तमन्ना खाक की बुनियाद पर है

उम्मीदें मिल रही मुझको गगन से


नुमाइश दौलतों की हो रही है

है किसका राब्ता मेरे सहन से


गरजती बिजलियाँ खामोश पानी

है किसको प्यार अब अपने चमन से


मुसीबत दोस्ती भी ग़म खुशी है

सियासत को नहीं मतलब अमन से


कोई अब बेचता है जिस्म अपना

शराफत क्या दिखे तेरे बदन से


ना रिश्ता याद है चाहत का तुम को

मिलेगा दिल को क्या ऐसे मिलन से


मेरी दुनिया से कैसे तुम गये हो

बेचैनी बढ़ गई तेरी सुखन से


हया और शर्म की बातें बताना

तुझे कब फिक्र है रस्मो चलन से ।।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama