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Vijay Kumar

Drama Inspirational Tragedy

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Vijay Kumar

Drama Inspirational Tragedy

वो औरत

वो औरत

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अपने बच्चों को रोता छोड़कर,

दूसरों के बच्चों को हंसाने आई है;

देखो एक मजबूर औरत,

दो जून की रोटी कमाने आई है।


रोया होगा उसका मन भी बार-बार

तब भी वह अपनी ममता को सीने में दबा के आई है;

देखो, एक बेबस औरत,

चंद कागज के नोट कमाने आई है।


अपने बच्चों को असुरक्षित छोड़कर,

दूसरों के बच्चों को सुरक्षा देने आई है;

देखो, आज फिर वह औरत,

अपनी ममता बिखेरने आई है।


भीगी होगी उसकी पलके भी कई बार,

फिर भी वह होठों पे मुस्कान सजा के आई है;

देखो, एक मजबूर औरत,

दूसरों के बच्चों पर प्यार लुटाने आई है।


अपने घर की हर मुश्किल झेलकर,

वह अपना कर्तव्य निभाने आई है;

देखो, आज फिर वह औरत,

दूसरों का घर सजाने आई है।


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