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ईश्वर स्वरुप माँ

ईश्वर स्वरुप माँ

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देखा तो नहीं ईश्वर को,

किस रूप में वो होता है,

मिली नहीं कभी उनसे मैं,

क्या मंदिरो में वो रहता है ?


जब से होश संभाला मैंने,

बस एक मूरत को जाना है,

मेरी जन्मदाता है वो,

उनको ही ईश्वर माना है ।


अपरिचित इस दुनिया में,

जब बच्चा पहली बार है आता

परिचय के रूप में केवल,

वो अपनी माँ का स्पर्श है पता ।


मुझे सुलाने के लिए,

वो रात भर लोरियाँ गाती

थक जाती तब भी ना सोती,

जब तक मुझे नींद ना आती ।


बिन बोले ही पढ़ लेती,

मन की बात जब-जब मायूसी आयी है,

बाबा के मना करने पर भी,

मेरी हर जिद्द पूरी कराई है ।


कोई माँग ना होती उनकी,

ना कोई आशा रखती हैं

अपने बच्चो से ऐसा,

निस्वार्थ प्रेम वो करती हैं ।


ममता और प्यार का सागर,

इस मूरत में ऐसे समाया है

माँ के रूप में कोई और नहीं,

हमने अपने ही ईश्वर को पाया है ।


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