जी लो फिर से वो बचपन
जी लो फिर से वो बचपन
आज का दिन रोज़ जैसा था,
उसमें कुछ भी नया ना था।
सब अपने काम में खोये थे,
कोई टेंशन में, तो कोई सोये थे।
अचानक मौसम ने करवट ली,
नन्ही बूंदें आसमां से बरसने को थी।
बूंदो का स्पर्श पाकर ये धरती झूमने लगी,
बस काम करने वालों में कोई हलचल ना थी।
कोई इस खुशनुमा माहौल को लेकर उत्सुक ना था,
हर कोई पैसा कमाने की भीड़ में शामिल जो था।
तभी एक तस्वीर आँखों के सामने छाई,
आज बचपन की वो सभी यादें याद आई।
वो भी क्या दिन हुआ करते थे,
जब बेफिक्री से गलियों में घुमा करते थे।
गुड्डे-गुड़ियों की शादी के सपने नन्ही आँखें देखा करती,
और अपनी दुनिया ?
वो तो दोस्तों की महफिल से सजी हुआ करती।
बारिश की पहली बूँद से चंचल मन मचल उठते,
माँ के मना करने पर भी हम सब भीगने निकल पड़ते।
हमारे सपनों में रंग-बिरंगे खेल खिलौनों की आस थी,
आज उसी आस पे रंगहीन पैसों ने जगह ली।
क्यों हम अपने बचपन को भुला बैठे ?
अपनी चंचलता को, मासूम सी हँसी को मिटा बैठे ?
सुन लो तुम भी अपने मन को,
जी लो फिर से वो बचपन को।
जी लो फिर से वो बचपन को।।