बचपन
बचपन
बचपन की थी वो बातें
जिसकी अब हमे आती है यादे
तब तक ही थी खुशियों की सौगाते
अब तो टेंशन के मारे कट जाती है राते !
अपने नन्हे पैर लेकर इधर उधर डोलता था
हर किसी के गम को अपनी ख़ुशी में घोलता था
आज फंस गया हूँ उसी चक्रव्यू में मैं
जिसके बारे में कभी भी ना सोचता था !
हसीं मेरी थी तब इतनी प्यारी
बिन दाँतो के लगती थी जो और भी न्यारी
टूटेंगे वापस आगे चलके वो दाँत भी कभी
मगर होगी ज़िंदगी में तब गम की बरी !
दस साल की ख़ुशी ने अगले साठ साल का गम दिया
ना चाहते हुए भी कितना कुछ कम दिया
नहीं जीना चाहता था मैं ऐसी भी ज़िंदगी
अब सोचता हूँ भगवान ने ऐसा जन्म ही क्यूंं दिया !
कुछ करना होगा ज़रूर मुझे यहाँ पे जब आएगी मेरी बारी
क्यूंकि वो नहीं कर पायेगी दुनिया सारी
मगर काश ये ज़िंदगी ना होती खुशियो की इतनी मारी
सोचो तब लगती ये दुनिया कितनी प्यारी...!
