जिदंगी बनाने में जिदंगी लगती ह
जिदंगी बनाने में जिदंगी लगती ह
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जिंदगी बनाने में,
जिंदगी लगती है,
सालों साल रिश्ते,
निभाने में उम्र कटती है।
किसी की नफरत,
चिढ़, लालच के,
कई रूप नजर आते हैं।
जिसे प्यार, अपनापन,
विश्वास लाने में,
जख्म कई खाते हैं।
जिंदगी बनाने में,
जिंदगी लगती है,
सबको खुश करने में,
हम अकेले हो जाते हैं।
ताउम्र जख्म,
अपनों के खाते हैं,
जिंदगी बनाने में,
जिंदगी लगती है।
मौसम से जल्दी,
अब रिश्ते बदलते हैं।
छोड़ दो गैरों की परवाह,
अपने कभी,
कहाँ समझते हैं,
जिंदगी बनाने में,
जिंदगी लगती है।