जीने का हक दो
जीने का हक दो


टूट जाता है अंतरमन
जब साथ होकर पराए होते है
पता होता है हमे सच
आंखें मिलाकर झूठ कहते है।
चला जो गया हमारा समय, अपनत्व
कहाँ वो लौटता है
रिश्तों के बंधन में हम टूट गए
हम त़ो सच कहकर, बुरे बन गए
नहीं चाहिए दोहरे रिश्ते
हमें बख्श दो
नहीं चाहिए हमें आपकी दौलत
हमारा जीवन हमें सौंप दो
खुद जीओ हमें भी जीने का हक दो