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Kavita prashant prajapati

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कोमल अहसास

कोमल अहसास

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कभी कठोर बन जाती है

कभी ढ़ेर सारा प्यार लुटाती है,

तो कभी कोमल हो जाती है

नदी की बहती धारा सी ,

यूँ ही मन मे घर कर जाती है,

जैसे कि मन की धारा में

कल-कल करके बहती है,

तो कभी शान्ति का वो अहेसास देती है।

जिसस की गोद में खो जाने वाली

एकांत शांति का एहसास होता है,

ठण्डी हवा के झोंके सी ,

हाँ हाँ, एक माँ ऐसी ही होती है

सच में ऐसी ही होती है।


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