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Utkarsh Arora

Drama

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Utkarsh Arora

Drama

आज-कल

आज-कल

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चाँद ने मुझसे कहा कि,

वो अब बादलों के नहीं,

इमारतों के पीछे छुपता है।


सूरज ने भी ये ही बताया के,

वो अब पहाड़ों से नहीं,

मीनारों से निकलता है।


अब रात काली तारों,

की कमी से नहीं,

प्रदूषण की अति से होती है।


उड़ती-फिरती थोड़ी,

साफ़ हवा मिली,

इसे फेफड़ों में कैद कर लूँ,

मुझे सांस की कमी-सी होती है।


ज़रा रुको ऐ इंसान,

ज़रा सुनो ओ भगवान,

धरती एक कूड़े-दान नहीं,

जिसे हम गंदा कर उजाड़ दें।


ये तो अन्तरिक्ष की सीप में,

पलता एक नीला मोती है।


गर इंसान अपनी इस,

अंधी दौड़ में नहीं रुका,

तो धरती की उम्र का पता नहीं,

पर धरती पे इंसान की उम्र,

निश्चय ही बहुत छोटी है।


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