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Utkarsh Arora

Classics Drama Tragedy

1.0  

Utkarsh Arora

Classics Drama Tragedy

काश्मीर

काश्मीर

1 min
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तारों की टिमटिमाहट से,

पानी में झिलमिलाहट से,

पलकों की हल्की-सी आहट से,

जो मन में उभरे, जो मन में पनपे,

ये उस स्वर्ग की तस्वीर है,

ये कश्मीर है, काश्मीर है।


बहती हवा की सरसराहट से,

फूलों पे भवरों की गुनगुनाहट से,

एक मासूम-सी कली की शरमाहट से,

जो मन को मंत्रमुग्ध करके,

करती अपने अधीन है,

ये कश्मीर है, काश्मीर है।


जहाँ भूमी और अंबर का होता मिलन,

जहाँ चैनो-अमन का था कभी वातावरण,

वो धरा पूछती है इंसान से बता ज़रा,

किसने तुझे ये हक़ दिया,

के तूने ऊपरवाले की इस धरती को,

टुकड़ों में बाँटने का साहस किया।


वो इस प्रश्न पर खामोश है,

उस जश्न में मदहोश है,

जो बरपा रहा है कहर,

बह रही है लहू की लहर,

कैसे इस कहर को रोकूँ,

कैसे उस लहर को टोकूँ,

जब हाथों में बंधी ज़ंजीर है,

ये कश्मीर है, काश्मीर है।


कुछ लकीरों से बंटा हुआ,

और तलवारों से कटा हुआ,

ज़ुल्म से अधमरा हुआ,

ज़ख्मी इसका शरीर है,

जो स्वयं अपने अस्तित्व की,

भीख माँगे, ये वो फकीर है,

ये कश्मीर है, काश्मीर है।


और फिर एक बच्चे ने अपनी माँ से पूछा,

“माँ क्या ये मेरा कश्मीर है ?”

माँ ने कहा, दूर वो मंज़र,

जहाँ स्वर्ग की तस्वीर है,

वो जो तेरे कर्मों की ताबीर है,

वो तेरा कश्मीर है, वो तेरा काश्मीर है।


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