तसव्वुर
तसव्वुर
एक अश्क आँखों से लिया,
थोड़ा बहाया, थोड़ा पिया,
एक ख्वाब यादों से लिया,
थोड़ा गवाया, थोड़ा जिया।
एक ज़ख्म फिर ज़िंदा किया,
थोड़ा उधेड़ा, थोड़ा सिया,
कुछ बीते लम्हों को यादों से छाँट कर,
फिर उनको ग़म और खुशी में बाँट कर।
नैनों को तेरे तीखे काजल से पिरोह कर,
होठों को तेरे खिलती मुस्कराहट में भिगो कर,
चेहरे को तेरे भीगी ज़ुल्फों से ढक कर,
हाथों पे तेरे मेहंदी से रंग भर कर।
तिनका-तिनका यादें समेट कर,
तेरी एक तस्वीर बनाई है,
जिसकी गोद में सर रख के,
मैंने सारी रात बिताई है।
एक मौसम फिज़ा को दिया,
थोड़ा धूप, थोड़ी-सी बदलियाँ,
एक गीत सरग़म को दिया,
थोड़ा सादा, थोड़ी-सी मुर्कियाँ।
उस चाँद ने फिर दीदार दिया,
थोड़ा चिल्मन के बाहर, थोड़ा दरमियाँ,
उँगलियों को अपनी उँगलियों में बाँध कर,
ख़ुदा से दुआओं में तुमको ही माँग कर।
आसमां की छत पे टिमटिमाते तारों को टाँग कर,
तेरे नूर की इक झलक पे,
इस जहाँ से जन्नत में लाँग कर,
इन सभी महकते लम्हों से यादों को सींच कर।
फिर उनको पलकों में बींच कर,
मैंने रंग-बिरंगे सपनों की फसल लगाई है,
जिसके फूलों की चादर अपनी,
नींद-भरी आँखों पे उड़ाई है।
चाहे खुशी का आलम हो या हो ग़म का समा,
मैं उलझनों की गाठों के वज़न में,
ज़िंदगी को भारी तोलता रहा,
फिर, एक शब, मेरे अक्स ने मुझसे कहा।
के यूँ तो मैं तुझसे जुड़ा हूँ पर,
मीलों से भी ज़्यादा अपनी जुदाई है,
यूँ तो मिलने को तड़प रहा हूँ,
पर उसमें भी मेरी ही तबाही है।
पर देख ज़रा इसे इस तरह,
के रूह और साये के मिलन में,
है मिलती दोनों को ख़ुदाई है,
क्या तूने अपनी मोहब्बत ऐसे ही निभाई है ?