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Sharique Imbesat

Drama Inspirational

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Sharique Imbesat

Drama Inspirational

आज़ाद कुआँ

आज़ाद कुआँ

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कुआँ खड़ा था एक सरहद पे,

दोनोंं तरफ ही प्यास थी

पानी भी ना सफेद रहा तब,

होली खेली जब लाल थी

ख़ुदगर्ज़, बेमतलब दोनोंं तरफ से, 

पनप रही एक आग थी ।

ना कुआँ भरा , ना भरी ख़ुदगर्ज़ी, 

दोनो सरहदें निराश थी ।

बीत गऐ साल पचास, 

पर तारीख़ वही जो आज थी ।

तब भी न सीखा, अब भी ना सीख पाये, 

प्यास से ज़रूरी मिठास थी ।


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