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खो गई है मेरी कविताएँ कहीं

खो गई है मेरी कविताएँ कहीं

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ढूंढ रहा हूँ अपनी कविताओं को,

भाड़े के कमरे के कोने-कोने में,

जहाँ कमरे के बाहर खोले गए चप्पलों की संख्या के हिसाब से,

बढ़ जाता है किराया हर माह,

ढूंढ रहा हूँ अपनी कविताओं को,

चावल, दाल और आटे के खाली कनस्तरों में,

बेटी की दूध की बोतल में,

जिसमें तीन चौथाई पानी मिला है,

ढूंढ रहा हूँ अपनी कविताओं को,

पत्नी की बेबस आँखों में,

माँ की कराहटों में, बॉस की गुर्राहटों में,

परिजनों के रहमदिल उद्गारों में,

ढूंढ रहा हूँ अपनी कविताओं को,

कुछ भूले-बिसरे दोस्तों के साथ गुजारी उन खूबसूरत यादों में,

जो गलती से भी मयस्सर नहीं होती अब एक पल के लिए भी,

अभी-अभी तो दिखी थी कविताएँ,

जब सोच रहा था उसकी बातें,

जो कभी मेरी हर ख़ुशी की वजह हुआ करती थीं,

उसकी निश्छल मुस्कुराहटों में,

गुम हो जाती थी हर गम और दुःख की छाया भी,

पर बदले हालातों में बदली उसकी मुस्कुराहटों में

गुम हो गई मेरी कविताएँ फिर से,

ढूंढ रहा हूँ अपनी कविताएँ।


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