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जीवन रौशनी

जीवन रौशनी

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लौट जाती है, होठों तक आकर वो हर मुस्कुराहट,

जो तुम्हारे नाम होती है,

जो कभी तुम्हारी याद आते ही

कई इंच चौड़ी हो जाया करती थी,


उन्मुक्त हँसी, बेपरवाह और बेबाक बातें,

करना तो शायद मैं अब, भूल ही चुका हूँ,

बार-बार जाता हूँ, उस घास में मैदान में,

और ढूंढता हूँ, अपने जीवन की वो तमाम स्वच्छंदता,


जो तुमसे मिलते ही पूरे महौल में

फै़ल जाया करती थी,

मेरी आँखें चमकने लगती थी रोशनी से,

और ज़ुबां पर ना जाने कहाँ से आ जाते थे,


वो तमाम किस्से, मेरे जीवन के,

जो तुम्हें बताने को आतुर रहता था मैं अक्सर,

हर अंग में स्फूर्ति जग जाती थी,

जैसे पंख मिल गये हो,

मुझे अनंत आसमान में उड़ने के लिये......


अब नहीं होता कुछ भी ऐसा,

जैसे जंग लग गये हो, मेरे हर अंग में,

ज़ुबां पर कुछ आते ही ठहर जाता हूँ,

तुम अक्सर कहा करती थी ना की,

बोलने से पहले सोचा करो,


सिर्फ यही एक इच्छा पूरी की है मैंने, तुम्हारी,

अब जबकि तुम साथ नहीं हो,

आँखों की चमक और रोशनी ग

ुम होने लगी है,

अनजाने डर व आशंकाओं की परछाइयों में उलझ कर,

अब उड़ने को पंख नहीं, पैरों से चलता हूँ,


अपने ही अस्तित्व का भार उठाये,

मेरे कंधे झुक जाते हैं,

जैसे सहन नहीं कर पा रहे हैं, जीवन का भार,

आँखें हर व़क्त, जमीं में गड़ी रहती है,

जैसे ढूंढ रही हो, कोई निशाँ,


जो उन राहों पर चलते हुए, हमने कभी छोड़ा था,

अब धूप में, चेहरे की रंगत उड़ जाने का डर नहीं होता,

और छाया भी दे नहीं पाती ठंडक तन को,

कानों में कभी तुम्हारी अवाज़ गूँज जाती है,

जैसे पुकार रही हो तुम, मुझे पीछे से,


ठहर जाता हूँ कुछ पल के लिये,

देखता हूँ, मुड़ कर पीछे, मगर वहाँ कोई नहीं होता,

दूर, बहुत दूर जहाँ मेरी आँखों की रोशनी

बमुश्किल पहुँच पाती है,

एक अस्पष्ट सी छाया नज़र आती है,

देखती है मुझे और ठठाकर हँसती है,


जैसे व्यंग कर रही हो मुझ पर,

फिर अचानक रुक जाती है,

पोंछती है अपने आँचल से वे आँसू की बूँदे,

जो उसके गालों पर लुढ़क आते हैं,

फिर गुम हो जाती है वो छाया भी,

जैसे गुम हो गयी थी तुम कभी....।।


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