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रामराज्य नहीं जंगल राज चाहिए

रामराज्य नहीं जंगल राज चाहिए

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जंगल को साफ कर शहर बसाये जा रहे है,

और शहर,

जंगल बनते जा रहे है,

जंगल में फिर भी एक रवायत थी,

वहाँ के बाशिंदे सिर्फ अपना पेट भरने के लिए आखेट करते थे,

उनकी अपनी संस्कृति,अपनी परम्पराएँ थी,

लोक संगीत था उनका,

एक जीवन पद्दति थी,

विज्ञान के चमत्कारों और अविष्कारों से सब लुप्त होते गई,

हमें नहीं चाहिए ये रोबोट,दुसरे ग्रह से आया आदमी

ये हमें उजाड़ने/ हमें बर्बाद करने को अवतारित हुआ है,

इस कंक्रीटों के जंगल के बाशिंदे जिसे हम सभ्य और शहरी कहते है,

अपनी कभी न ख़त्म होने वाली प्यास को बुझाने के लिए आखेट करते है,

उस जंगल में कम से कम उन्मुक्तता तो थी,

चैन-ओ -सुकून और बेफिक्र हंसी तो थी,

इस जंगल ने तो छीन लिया हमसे हँसने का हुनर,

उन्मुक्तता, बेफिक्री चैन-ओ-सुकून,

सब गिरबी है, इस जंगल के जानवरों के पास,

हवाएँ तक कैद है जिनके पास,

उनसे अपनी रिहाई की क्या उम्मीद रखें?

सरकारें रामराज्य लाने की बातें करती है,

और हमें हवा-पानी से भी महरूम किए जा रही है,

क्या हासिल होगा रामराज्य पाकर भी,

ये शहर जो जंगल बनते जा रहा है,

इसके जानवर और ताकतवर हो जाएँगे,

और हम अपनी साँसों के लिए भी कीमत चुकाएंगे,

अब तो ये निष्कर्ष निकालना होगा,

हमें रामराज्य नहीं, जंगलराज चाहिए।


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