स्वप्नद्रष्टा
स्वप्नद्रष्टा
सपने पलते हैं आँखों में,
कुछ बनने के,
कुछ करने के,
फिर आँखों से उतर कर,
बहने लगते है जीवन में,
बाधा-विध्न विकट आते हैं,
रोकने धारा सपनों के,
पर सफल माँझी वही है जो,
अपना हाथ नहीं रोकता है,
रख भरोसा निज पतवार पर,
तूफानों से लड़ता है,
विजयश्री होकर जो
सदा आगे बढ़ता है,
सच और स्वाभिमान,
जिसके चेहरे में दिखता है,
वही बदलता है तकदीर,
अपना भी और अपनों की भी।