आरंभ
आरंभ
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बहुत हुआ उत्पात मुसीबतों का ,
आरंभ कर दो अब आराम का ,
बहुत हुआ दुखो का अंबार ,
आरंभ करो खुशियों की झंकार।
बहुत हुआ झूठों का नाम ,
आरंभ करो सच्चाई का काम,
बहुत बिता वादों की बाते ,
आरंभ करो कर्मो की बात ,
बहुत हुआ जूतम पैजार
आरंभ करो अब तो प्यार,
बहुत हुआ तेरा मेरा ,
आरंभ करो अब हमारा ।।