मन की थकान
मन की थकान
कोई तो दूर कर दे मन की थकान को,
कोई तो समझ ले मन के अरमान को।
क्यों समझता है ये किसी को अपना,
जिसके लिए पराया घर बना है सपना,
कोई तो इजाज़त दे मेरे रंग भरने को।
कोई तो दूर कर दे मन की थकान को,
कोई तो समझ ले मन के अरमान को।
लाल रंग से जुड़ गई लेके उसका नाम,
ज़ुबाँ पर है वो ही सुबह हो या शाम,
तरस गयी एक अपना नाम सुनने को।
कोई तो दूर कर दे मन की थकान को,
कोई तो समझ ले मन के अरमान को।
अस्तित्व मेरा अस्त,उदय उसकी शान,
रंग से मैं बेरंग हुई, वो बसंती हो आन,
खोई उम्मीद देदो इन बहती आंखों को।
कोई तो दूर कर दे मन की थकान को,
कोई तो समझ ले मन के अरमान को।
