मैं तो जिंदगी का साथ निभाता चला गया
मैं तो जिंदगी का साथ निभाता चला गया
अश्कों को अब गिरने की इजाजत तक नहीं,
क्योकि हमे अब रोने की आदत तक नही।।
अब तो बारिश का सहारा लेना पड़ता है,
हमे इन अश्कों को छलकाने के लिए।।
न जाने कितने ही गम छुपाये बैठें हैं,
एक दर्द का सैलाब संभाले बैठें हैं।।
अरे हमारी हालत अब कुछ ऐसी है,
कि रोना तो चाहते हैं,
पर होठों पे मुस्कान सजाये बैठें है।।
वक़्त का पहिया बस चलता चला गया,
हम में छुपे बचपने को निगलता चला गया।।
अब दोष दे भी तो किसे??
मैं तो जिंदगी का साथ निभाता चला गया ।।