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Hitendra Brahmbhatt

Inspirational

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Hitendra Brahmbhatt

Inspirational

हार कर भी सिकंदर बन जाऊं

हार कर भी सिकंदर बन जाऊं

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आज नदियां और तालाब कूद जाऊं तो अच्छा है

या तो आज समंदर में ही डूब जाऊं तो अच्छा है


अक्कड़ खड़ा हूं आज आईने के सामने रहकर मैं

कांच की तरह आज पूरा ही टूट जाऊं तो अच्छा है


घनघोर वृक्ष की तरह में आज खुद को मानता मैं

डालियों की तरह थोड़ा झुक जाऊं तो अच्छा है


पंछियों की तरह आज आज़ाद तो गुम रहा हूं मैं

बस वृक्षों की डालियों पर झूल जाऊं तो अच्छा है


बहुत ही गहरे घाव दिए है यहां पे ज़माने ने मुझे

बस आज सारे गमों को भूल जाऊं तो अच्छा है


भूल भुलैया की तरह रास्ते हो गए है ज़िंदगी में

बस अपनी मंज़िल तक पहुंच जाऊं तो अच्छा है


मेरे हाथों में लकीरें तो खुदा ने यहां खूब बनाई है

लकीरें मिटाकर खुद तकदीर बना लूं तो अच्छा है


हर मुकाम पर जीत की ख्वाहिशें तो सबको है

मैं हार कर भी सिकंदर बन जाऊं तो अच्छा है ।



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