नहीं है जरूरत मुझे...
नहीं है जरूरत मुझे...
कहीं किसी मोड़ पर मिल जाएं गर कोई नजीब तो,
नहीं है जरुरत मुझे अब वहशतगर्दो के दीदार की.
दिलों को ही झोड़ने के लिए आए हैं गर हम तो,
नहीं है जरुरत मुझे किसी नफरतों की दीवार की.
थोड़े ही नगीने गर हर गली हर डगर मिल जाएं तो,
नहीं है जरुरत मुझे किसी कमीनों के बाज़ार की.
सलीक़ा बज़्म में जाने से पहले हैं सीखा गर तो,
नहीं है जरूरत मुझे नाज़ेब हरक़तों वाले गंवार की.
मुहब्बत का आशियां ही देने का सोचा है गर तो,
नहीं है जरुरत मुझे अब इशरतों वाले धर-बार की.
मुझे बर्बाद करने की ही उम्मीदें ठानी है गर तो,
नहीं है ज़रूरत मुझे अब दुश्मनों के किसी वार की.
समझौता ज़िंदगी से न करने का ठाना है गर तो,
नहीं है जरूरत मुझे अब ज़िंदगी में इसरार की.
फिज़ा में महकेंगी जब कभी हितेंद्र की दास्तां तो,
नहीं है जरूरत मुझे अज़्मतों के लिए अख़बार की।