सूर्य प्रेम
सूर्य प्रेम
देखकर सूर्य प्रेम कोहरे ने
कैसा जाल फैलाया है।
नजर पड़े ना सूर्य की
सुरक्षा कवच पहनाया है।
लगाकर पहरा इश्क पर
कहे निज फर्ज मैंने निभाया है।
प्रेम ताकत से अनजान वो
खुद को कैसे भरमा रहा।
देख पागलपन कोहरे का
सूर्य कैसे शरमा रहा ।
खेल खेल रहा कोहरे से
मालूम न इसको हो पाया।
कौन साहसी बलवान सूर्य के
समक्ष कभी भी टिक पाया
धीरे-धीरे भानु ने जब
आवरणमुख से हटा दिया।
काँपने लगा कोहरा देखो
सूर्य चरणों में शीश झुका लिया ।
हाथ जोड़ विनती करें
मार्ग कभी ना आऊंगा ।
आता देख दूर से तुमको
मैं मार्ग से हट जाऊँगा ।
मैं मार्ग से हट जाऊँगा ।।