पूछे ये वर्ष कई सवाल
पूछे ये वर्ष कई सवाल
जाते-जाते पूछ रहा
यह वर्ष कई सवाल।
कब-कब हुए प्रसन्न भैया,
हुये कब-कब तुम बेहाल।
कितने धर्म कमाए और
कितना पुण्य दान किया।
कितने किए पाप कर्म,
कितना गंगा स्नान किया।
समक्ष नैनों के तुम्हारे,
बोलो कितने दुष्कर्म हुए।
मानव होकर मौन रहे
क्यों इतने बेशर्म हुए।
बोलो पग पग अधर्म ने
क्यों फैलाया जाल।
जाते-जाते पूछ रहा
यह वर्ष कई सवाल।
न शमित हुई चित्त तृष्णा
पथिक बने किस पाथ।
विस्मरा कर प्रभु को क्यों
बिसार दिया ईश हाथ।
कटु कलह फैला चहुं ओर
न सतमार्ग दिया दिखाई।
निशदिन रहे भटकते जग में
बन बैठे तुम सौदाई।
पीछे पीछे कर्म तुम्हारे
उद्धत है करने को हलाल।
जाते जाते पूछ रहा
यह वर्ष कई सवाल।