परिवर्तन
परिवर्तन
पि के यौवन का रस मदमस्त
होकर, मैं बचपन को छोड़ चली
युगों युगो से ठहरी थी, जो अनुपम कली
प्यार वो आज मैं देने चली
प्रिय के संग प्रीत डोर जोड़ने को
खोकर सुधबुद मैं आज सजकर निकली।
छोड़ बचपन की अठखेलियां
जवानी के अल्हड़ पन छूने को निकली
लेकर हल्की चुलबुलाहट, लाज
के पट ओढे मै आज चलि
अद्भुत उमंग तनमन में लिए
प्रेम के प्रथम दीप जलाने को
सज सँवर मैं छोड़ दहलीज को
प्रेम पाने घर से निकली
अपने कोमल हदय के अंजुमन में
मीठे स्वप्न सजाने को
होकर बेचैन दिल में, मैं
आज बहुत दूर तक निकली
अपने प्रिय प्रियतम से मिलने
अपना घर आंगन, बाबुल, सखियां
अपना हर आकार तज निकली।