पुष्प मैं वो बन जाऊँ
पुष्प मैं वो बन जाऊँ
चाहु जिसको मैं वो ही मुझको मिल जाये,
फिर नहीं चाह किसी और की,
चाह नहीं फिर किस जगह पे चढ़ जाऊँ
प्रेम उन्ही के लिए है मेरा जो
बीर मातृभूमि पे मिट जाये,चाहूं
फिर उनको ही जो मुझको मिल जाये
मिलकर फिर हम दोनों देश हित में
कुछ ऐसा कर जाये,
न हो आगमन बार बार यही,
है यही चाह बस फिर किसी सूरवीर के
पाँव की धूली बन जाये, पुष्प मैं वो बन जाऊँ।